- स्टैंड-अप इंडिया का उद्देश्य बैंक की प्रत्येक शाखा से कम से कम एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति तथा कम से कम एक महिला उधारकर्ता को नवीन उद्यम स्थापित करने हेतु 10 लाख से 1 करोड़ रुपये के बीच के बैंक ऋण उपलब्ध कराना है। ये उद्यम विनिर्माण, सेवाओं या व्यापार क्षेत्र के हो सकते हैं। गैर-व्यक्ति उद्यमों की स्थिति में, कम से कम 51% शेयरधारिता तथा नियंत्रक अंश अनुसूचित जाति / जनजाति या महिला उद्यमी का होना चाहिए।
- स्टैंड-अप इंडिया योजना अनुसूचित जाति / जनजाति तथा महिला उद्यमियों को ऋण प्राप्त करने तथा व्यवसाय में सफलता पाने के लिए समय-समय पर जरूरी अन्य सहायता मिलने में आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। अत: योजना में इस प्रकार का कार्य परिवेश विकसित करने का प्रयास किया गया है, जिससे व्यवसाय करने के लिए एक सहायक माहौल सतत रूप से उपलब्ध कराया जा सके। इस योजना में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की सभी शाखाएँ शामिल हैं तथा तीन प्रमुख माध्यमों से इस योजना का लाभ लिया जा सकता है :
- सीधे शाखा में अथवा
- सिडबी के स्टैंड-अप इंडिया पोर्टल (www.standupmitra.in) के माध्यम से अथवा
- अग्रणी ज़िला प्रबंधक (एलडीएम) के माध्यम से
- यह पोर्टल उधारकर्ता के मापदंडों /विन्यास (जो नीचे दिए गए 8-10 प्रश्नों के सेट से प्राप्त किए जाएँगे) हेतु एक महत्त्वपूर्ण पारस्परिक संवाद-स्थल होगा तथा यह ऐसे उधारकर्ताओं को सूचना व प्रतिसूचना उपलब्ध कराएगा। भावी उधारकर्ता के पास विकल्प होगा कि वह इस पोर्टल पर सीधे पंजीकरण कर ले अथवा केवल इसे देख ले और बाद में पंजीकरण करवाए। यह पोर्टल घर पर, सामूहिक सेवा केंद्रों पर, किसी बैंक शाखा में (उस शाखा के मुद्रा नोडल अधिकारी के माध्यम से) अथवा अग्रणी ज़िला प्रबंधक की मदद लेकर देखा जा सकता है। जिन शाखाओं में इंटरनेट तक पहुँच प्रतिबंधित हो, वह शाखा भावी इंटरनेट की सुविधा वाले स्थान के बारे में उधारकर्ता का मार्गदर्शन करेगी।
- हैंडहोल्डिंग के लिए स्टैंड-अप इंडिया पोर्टल का दृष्टिकोण, आरंभिक स्तर पर कुछ प्रासंगिक प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने पर आधारित है। ये प्रश्न सामान्यत: इस प्रकार के होंगे :
- उधारककर्ता की अवस्थिति
- श्रेणी – अनुसूचित जाति / जनजाति / महिला
- सोचे गए व्यवसाय का स्वरूप
- व्यवसाय संचालित करने हेतु स्थान की उपलब्धता
- परियोजना रिपोर्ट तैयार करने हेतु आवश्यक सहायता
- कौशल / प्रशिक्षण की आवश्यकता (तकनीकी व वित्तीय).
- वर्तमान बैंक खाते का विवरण
- परियोजना में स्व-निवेश की राशि
- क्या मार्जिन राशि जुटाने के लिए मदद की ज़रूरत है
- व्यवसाय में कोई पिछला अनुभव
उत्तरों के आधार पर, यह पोर्टल प्रासंगिक प्रतिसूचना उपलब्ध कराता है तथा पोर्टल के प्रयोक्ता को तैयार उधारकर्ता या प्रशिक्षु उधारकर्ता के रूप में वर्गीकृत करता है।
सांकेतिक प्रक्रिया चार्ट संलग्न है।
तैयार उधारकर्ता
- यदि उधारकर्ता को किसी सहायता की आवश्यकता न हो, तो पोर्टल पर तैयार उधारकर्ता के रूप में पंजीकरण किए जाते ही चयनित बैंक में ऋण आवेदन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस स्तर पर एक आवेदन संख्या प्राप्त होगी तथा उस उधारकर्ता से संबंधित सूचना संबंधित बैंक, अग्रणी ज़िला प्रबंधक (प्रत्येक ज़िले में पदस्थ) एवं नाबार्ड/ सिडबी के संबंधित कार्यालय के पास पहुँच जाएगी। सिडबी एवं नाबार्ड के कार्यालयों को स्टैंड-अप संपर्क केंद्र (कनेक्ट सेंटर) (एसयूसीसी) के रूप में नामित किया जाएगा। अब ऋण आवेदन तैयार हो जाएगा और पोर्टल के माध्यम से उसकी स्थिति देखी जा सकेगी। प्रशिक्षु उधारकर्ता
- जिन मामलों में उधारकर्ता किसी सहायता की आवश्यकता इंगित करता है, उनमें पोर्टल पर प्रशिक्षु उधारकर्ता के रूप में पंजीकरण होते ही उधारकर्ता का संपर्क संबंधित ज़िले के अग्रणी ज़िला प्रबंधक और सिडबी / नाबार्ड के संबंधित कार्यालय से स्थापित हो जाएगा। यह एक इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया होगी, जिसे उधारकर्ता के घर पर स्वयं उसके द्वारा या किसी ग्राहक सेवा केंद्र पर या किसी बैंक शाखा के मुद्रा संपर्क अधिकारी द्वारा किया जा सकता है, जैसा कि अनुच्छेद 2 में स्पष्ट किया गया है।
- स्टैंड-अप संपर्क केंद्र (कनेक्ट सेंटर) के रूप में सिडबी (79 कार्यालय) एवं नाबार्ड (503 कार्यालय) ऐसे प्रशिक्षु उधारकर्ताओं की मदद की व्यवस्था करेंगे, जो निम्नलिखित में से एक या अधिक तरीकों से किया जा सकता है :
- क. वित्तीय प्रशिक्षण हेतु – वित्तीय साक्षरता केंद्रों पर
- ख. कौशल उन्नयन हेतु – कौशल उन्नयन केंद्रों पर (व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र / अन्य केंद्र)
- ग. उद्यमिता विकास कार्यक्रमों हेतु – एमएसएमई डीआई / ज़िला उद्योग केंद्रों / ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों पर
- घ. वर्कशेड हेतु – ज़िला उद्योग केंद्र
- च. मार्जिन राशि हेतु – मार्जिन राशि सहायता योजनाओं से संबद्ध कार्यालय अर्थात राज्य अनुसूचित जाति वित्त निगम, महिला विकास निगम, राज्य खादी एवं ग्रामीण उद्योग बोर्ड, एमएसएमई डीआई आदि।
- छ. स्थापित उद्यमियों से मार्गदर्शक सहायता हेतु – डीआईसीसीआई, महिला उद्यमी संघ, व्यापार निकाय। विश्वस्त सुस्थापित गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से भी मार्गदर्शक सहायता उपलब्ध कराई जा सकती है।
- ज. उपयोगिता कनेक्शनों हेतु – ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध कराने वाले कार्यालय
- झ. विस्तृत परियोजना रिपोर्ट हेतु – सिडबी / नाबार्ड / ज़िला उद्योग केंद्रों के पास उपलब्ध परियोजना रूपरेखाएँ
किसी भी समय, यहाँ तक कि ऋण मंजूर होने के बाद भी, कोई भी उधारकर्ता स्टैंड-अप संपर्क केंद्रों (कनेक्ट सेंटरों) की सेवाएँ ले सकता है।
- अग्रणी ज़िला प्रबंधक इस प्रक्रिया की निगरानी करेगा तथा समस्याएँ सुलझाने और व्यवधानों को दूर करने के लिए सिडबी एवं नाबार्ड के स्थानीय कार्यालयों के साथ मिलकर काम करेगा। प्रत्येक मामले में हुई प्रगति एवं प्रथम-दृष्टया व्यवहार्यता के आधार पर, अग्रणी ज़िला प्रबंधक संबंधित बैंक शाखा को उन मामलों के बारे में पहले से सूचित करेगा, जिनमें अच्छी संभावनाएँ हों। इसके बाद, सिडबी /नाबार्ड आगामी अनुवर्तन हेतु संबंधित बैंक अधिकारियों से मिलेंगे। ये संगठन अन्य भागीदार संगठनों के साथ भी मिलकर काम करेंगे, जैसे - दलित इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (डीआईसीसीआई), महिला उद्यमियों के संघ, आदि।
- जब अग्रणी ज़िला प्रबंधक एवं प्रशिक्षु उधारकर्ता की संतुष्टि के अनुरूप, मार्गदर्शक सहायता संबंधी आवश्यकताएँ पर्याप्त रूप से पूर्ण हो जाएँगी, तो पोर्टल के माध्यम से एक ऋण आवेदन प्राप्त होगा।
स्टैंड-अप इंडिया पोर्टल
- स्टैंड-अप इंडिया पोर्टल प्रतिसूचनात्मक आधार पर कार्य करता है। इसमें उन विभिन्न निकायों के बारे में सूचना उपलब्ध है, जो उधारकर्ता को मार्गदर्शक सहायता उपलब्ध कराते हैं। इनमें शामिल हैं :
- प्रशिक्षण : तकनीकी या / और वित्तीय
- विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करना
- मार्जिन राशि सहायता
- शेड / कार्यस्थल की पहचान
- कच्चे माल के स्रोतों की जानकारी
- बिल भुनाई
- ई-कॉम पंजीकरण
- कराधान हेतु पंजीकरण
- यह पोर्टल आवेदनपत्र प्राप्त करने, सूचना एकत्र व उपलब्ध कराने, पंजीकरण करने, मार्गदर्शक सहायता हेतु संपर्क सूत्र उपलब्ध कराने, खोज करने तथा निगरानी में सहायता देने के उद्देश्य से बनाया गया है। जैसे-जैसे अधिक सुविधाएँ उपलब्ध होती जाएँगी, इसमें और सुधार किए जाएँगे, ताकि इससे आद्योपांत समाधान उपलब्ध हो सकें।
- स्टैंड-अप इंडिया योजना ऐसे कार्य परिवेश के निर्माण का प्रयास है, जिससे उधारकर्ता तैयार किए जा सकें। यह प्रणाली अभी नवीन उधारकर्ताओं को सहायता देने के लिए है, किंतु इसमें यथासमय अन्य योजनाओं को भी शामिल किया जाएगा।
ऋण का स्वरूप
- यह ऋण एक संमिश्र ऋण होगा, अर्थात् संयंत्र एवं मशीनों (प्लांट व मशीनरी) जैसी संपत्तियों एवं कार्यशील पूँजी संबंधी जरूरतों को पूर्ण करेगा। आशा है, इससे परियोजना लागत का 75% भाग कवर हो जाएगा तथा ब्याजदर उस श्रेणी (रेटिंग) के लिए बैंक में लागू न्यूनतम दर होगी, जो (आधार दर (एमसीएलआर) + 3%+ मीयाद प्रीमियम) से अधिक नहीं होगी। इसकी चुकौती अवधि 7 वर्ष तक होगी, जिसमें 18 माह तक की ऋण-स्थगन अवधि शामिल है। कार्यशील पूँजी घटक के परिचालन करने हेतु एक रूपे-कार्ड जारी किया जाएगा। (ऋण से परियोजना लागत का 75% तक अंश उपलब्ध कराने का मानदंड उस स्थिति में लागू नहीं होगा, जब किसी अन्य योजना से अभिसारी सहायता सहित उधारकर्ता का अंशदान परियोजना लागत के 25% से अधिक हो जाता है)।
ऋण गारंटी / संपार्श्विक प्रतिभूति
- स्टैंड-अप इंडिया के अंतर्गत ऋणों के लिए ऋण गारंटी योजना अधिसूचित कर दी गई है। (www.ncgtc.in). इससे संबंधित मानदंड मौजूदा सीजीटीएमएसई मानदंडों के अनुरूप बना दिए गए हैं।
मार्जिन राशि
- योजना में 25% मार्जिन राशि का प्रावधान है, जो पात्र केंद्रीय / राज्य योजनाओं के अभिसरण के साथ उपलब्ध कराई जा सकती है। यद्यपि इन योजनाओं का उपयोग स्वीकार्य सब्सिडी लेने के लिए या मार्जिन राशि की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है, तथापि सभी मामलों में, उधारकर्ता को स्वयं के अंशदान के रूप में परियोजना लागत की कम से कम 10% राशि लानी अपेक्षित होगी। उदाहरण के लिए, यदि किसी राज्य योजना में उधारकर्ता को सब्सिडी के रूप में परियोजना लागत के 20% तक सहायता दी जाती है, तो उधारकर्ता को परियोजना लागत की कम से कम 10% राशि लाना आवश्यक होगा। यदि किसी इकाई को कोई ऐसी सब्सिडी प्राप्त होती है, जिसका ऋण मूल्यांकन के दौरान पूर्वानुमान नहीं किया गया था, तो उसे ऋण खाते में जमा कर दिया जाएगा। जिन मामलों में सब्सिडी मूल्यांकन के दौरान शामिल की गई थी, किंतु परिचालन शुरू होने के बाद प्राप्त हुई हो, तो वह उधारकर्ता को जारी कर दी जाएगी, ताकि वह उसका उपयोग मार्जिन राशि की व्यवस्था हेतु लिए गए किसी ऋण को चुकाने में कर सके। केंद्रीय / राज्य-वार सब्सिडी / प्रोत्साहन योजनाओं की एक सूची पोर्टल पर उपलब्ध कराई जाएगी। नई योजनाओं के उपलब्ध होने पर उन्हें भी इस सूची में जोड़ा जाएगा।
ज़िला स्तरीय ऋण समिति
- ज़िलाधिकारी (कलेक्टर) के अधीन ज़िला स्तरीय ऋण समिति, जिसके संयोजक अग्रणी ज़िला प्रबंधक होंगे, प्रत्येक तिमाही में कम से कम एक बैठक करेगी और आवधिक रूप से दोनों तरह के उधारकताओं के मामलों की समीक्षा की जाएगी। सिडबी एवं नाबार्ड के अधिकारीगण भी समीक्षा बैठकों में उपस्थित रहेंगे।
ऋण संवितरण के बाद सहायता
- ज़िला स्तर पर आवश्यकतानुसार तथा प्रत्येक तिमाही में कम से कम एक बार कार्यक्रम आयोजित किए जाएँगे, जिनमें भागीदारों को सर्वोत्तम प्रथाओं की जानकारी दी जाएगी तथा समीक्षा व समस्याओं का समाधान करते हुए भावी उद्यमियों को मार्गदर्शन दिया जाएगा। ये कार्यक्रम बिल भुनाई सेवाओं, ई-बाजारों, कराधान, आदि के लिए पंजीकरण सुगम बनाने के मंच भी होंगे। इन कार्यक्रमों का आयोजन सिडबी के सहयोग से नाबार्ड करेगा।
परिवेदना निवारण
- पोर्टल पर उधारककर्ता की परिवेदनाओं के समाधान की व्यवस्था की गई है। यह पोर्टल प्रत्येक बैंक के उन अधिकारियों /एजेंसियों के संपर्क विवरण उपलब्ध कराता है, जो परिवेदनाओं के समाधान हेतु पदनामित हैं। पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन शिकायतें प्रस्तुत करने और तत्पश्चात् उन्हें देखे जाने की प्रणाली विकसित की जाएगी। शिकायत के निपटान पर संबंधित बैंक ग्राहक को प्रतिसूचना उपलब्ध कराएगा।
- बैंक संबंधित अपेक्षाओं, जैसे - स्टॉक विवरणी, सृजित संपत्तियों का बीमा तथा यथोचित संसाधन (प्रक्रिया) शुल्क का निर्धारण कर सकते हैं।
हितधारकों के उत्तरदायित्व
स्टैंड-अप संपर्क केंद्र (कनेक्ट सेंटर) (सिडबी / नाबार्ड):
सिडबी:
- स्टैंड-अप इंडिया वेब पोर्टल का परिचालन और रखऱखाव
- प्रशिक्षु उधारकर्ताओं के लिए प्रारंभिक सहयोग की व्यवस्था
- भावी मामलों में अनुवर्तन के लिए एलडीएम / एसएलबीसी के माध्यम से बैंकों से समन्वय
- बाधाओं के शमन के लिए एलडीएम के साथ समन्वय
- समीक्षा और निगरानी में एसएलबीसी तथा डीएलसीसी की मदद
- नाबार्ड द्वारा आयोजित स्टैंड-अप संबंधी कार्यक्रमों में सहभागिता
नाबार्ड:
- स्टैंड अप इंडिया के लिए प्रशिक्षकों, एलडीएम तथा बैंक अधिकारियों का प्रशिक्षण
- प्रशिक्षु उधारकर्ताओं के लिए प्रारंभिक सहयोग की व्यवस्था
- भावी मामलों में अनुवर्तन के लिए एलडीएम के माध्यम से बैंकों से समन्वय
- बाधाओं के शमन के लिए एलडीएम के साथ समन्वय
- समीक्षा और निगरानी में एसएलबीसी तथा डीएलसीसी की मदद
- हितधारकों के बीच अनुभव के आदान-प्रदान के लिए, आवश्यकतानुसार और प्रत्येक प्रत्येक तिमाही में कम से कम एक बार, कार्यक्रम आयोजित करना
अग्रणी जिला प्रबंधक (एलडीएम):
- मामलों की प्रगति की निगरानी
- बाधाओं के शमन हेतु सिडबी / नाबार्ड के लिए संपर्क बिंदु के रूप में कार्य करना
- भावी उधारकर्ताओं के विषय में बैंकरों को जागरूक करना
- संबंधित बैंक के क्षेत्रीय / अंचल कार्यालय के साथ अनुवर्तन करना, ताकि सूक्ष्म और लघु उद्यमों के प्रति बैंक प्रतिबद्धता संहिता में निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर ऋण के संबंध में कार्रवाई / मंजूरी सुनिश्चित हो सके।
- यह सुनिश्चित करना कि उधारकर्ता की आरंभिक सहयोग सबंधी आवश्यकताएँ संभव सीमा तक पूरी हो जाएँ।
- निर्दिष्ट आवधिकता में डीएलसीसी की बैठकें आयोजित करना
- हितधारकों के लिए नाबार्ड द्वारा आयोजित तिमाही कार्यक्रमों में सहभागिता करना
जिला स्तरीय ऋण समिति (डीएलसीसी):
- ज़िलाधिकारी (कलेक्टर) के अधीन ज़िला स्तरीय ऋण समिति आवधिक रूप से प्रगति की समीक्षा करेगी
- ज़िला स्तर पर परिवेदना निवारण
- जन उपयोगिता सेवाओं तथा भावी उधारकर्ताओं के लिए कार्यस्थल संबंधी मुद्दों के समाधान में मदद
बैंक शाखाएँ:
- पोर्टल में प्रवेश करने में भावी उधारकर्ताओं की मदद करना
- ऑनलाइन अथवा व्यक्तियों से प्राप्त ऋण आवेदनों पर कार्रवाई करना
- सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के प्रति बैंक प्रतिबद्धता संहिता में निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर ऋण संबंधी कार्रवाई (प्रोसेस) करना (आवेदन प्राप्त होने की तारीख से 2 सप्ताह के भीतर 5 लाख रुपये तक के ऋण आवेदन, 3 सप्ताह के भीतर 5-25 लाख रुपये के आवेदन तथा 6 सप्ताह के भीतर 25 लाख से अधिक के आवेदन, बशर्ते आवेदन सभी दृष्टियों से पूर्ण हो और अपेक्षित दस्तावेज़ उसके साथ संलग्न किए गए हों)।
- अस्वीकृति की दशा में उधारकर्ता को कारण बताए जाएँ, जैसा कि ग्राहकों के प्रति बैंक प्रतिबद्धता संहिता में निर्धारित है।
- ग्राहकों के प्रति बैंक प्रतिबद्धता संहिता के अनुसार बैंक स्तर पर परिवेदना निवारण 15 दिन में किया जाना चाहिए।
- योजना के कार्यनिष्पादन की निगरानी के लिए बैंक आंतरिक कार्यप्रणाली लागू करें।
उधारकर्ता:
- पोर्टल में प्रवेश करें अथवा बैंक शाखा में जाएँ और एक छोटे से प्रश्न-समूह का उत्तर दें।
- यदि प्रशिक्षु उधारकर्ता के रूप में वर्गीकृत किए जाएँ, तो प्रारंभिक सहयोग प्राप्त करने की प्रक्रिया से गुजरें (जैसा लागू हो)
- बैंक शाखा की अपेक्षानुसार आवश्यक दस्तावेजों की व्यवस्था करें / प्रदान करें।
- अनुभव के आदान-प्रदान, सर्वोत्तम पद्धतियों, समस्या-समाधान आदि पर आयोजित तिमाही कार्यक्रमों में सहभागिता
- सम्यक् सावधानी के साथ इकाई की स्थापना और संचालन
- निर्धारित समय पर चुकौती